तोरई की जैविक खेती

तोरई की जैविक खेती से किसानों को बहुत अधिक लाभ होता है क्योंकि जनवरी माह में बाजार में इस सब्जी की बहुत अधिक डिमांड होती है तोरई की सब्जी को खाना बहुत अधिक लोग पसंद करते हैं इस सब्जी में पोषक तत्व के बहुत अधिक गुण होते हैं जो हमारे सेहत को तंदुरुस्त और फौलादी बनाते हैं इस सब्जी की खेती में ज्यादा लागत नहीं लगती और मेहनत भी नहीं लगती आप इसकी खेती से बहुत ही अधिक कमाई कर सकते हैं हम बात कर रहे हैं तोरई की खेती की तोरई की खेती जरूर करना चाहिए. आईए हम इस खेती के बारे में जाने

तोरई की जैविक खेती

तोरई की जैविक खेती (Organic Cultivation of Ridge Gourd)

तोरई की जैविक खेती से किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी है इसकी खेती में बहुत ही कम खर्चे में की जा सकती है और मुनाफा बहुत ज्यादा किया जा सकता है तोरई की जैविक खेती को कृषि की बात (Krishi Ki Baat) के आर्टिकल के माध्यम से विस्तृत जानकारी

तोरई की जैविक खेती से दो महीने में बने लखपति

तोरई एक बेल वाली बहुवर्गीय सब्जी है इस सब्जी को बड़े खेत एवं छोटी क्यारी में भी उगा सकते हैं किसान अगर इस खेती को वैज्ञानिक तरीके से करें तो इस फसल की पैदावार बहुत अच्छी हो, जिससे किसान की अच्छी कमाई भी हो सकती है तोरई की खेती पूरे भारत में की जाती है महाराष्ट्र में इसकी खेती 1147 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है यह खेती ग्रीष्म और वर्षा खरीफ दोनों ऋतुओं में की जा सकती है तोरई की फसल को नगदी के तौर पर व्यावसायिक फसल के रूप में जाना जाता है

तोरई की जैविक खेती कैसे करें

तोरई की जैविक खेती करने के लिए किसान भाइयों को खेत की तैयार करना होता है तोरई की जैविक खेती के लिए पहले खेत की अच्छे तरीके से जुताई करना चाहिए पाटा लगाकर गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलाना चाहिए तोरई की खेती कार्बनिक पदार्थ से युक्त उपजाऊ मिट्टी में सबसे अच्छी पैदावार देती है इसके पौधे बीज के माध्यम से लगाए जाते हैं इसकी बुवाई के लिए हमें उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करना चाहिए तोरई की खेती में पौधों के बीच की दूरी 1 मीटर से 2 मीटर तक रखना चाहिए और निराई गुड़ाई समय-समय पर करते रहना चाहिए बुवाई के बाद फसल करीब 2 महीने में तैयार होती है

खेत की तैयारी

तोरई की खेती शुरू करने से पहले किसानों को मृदा और जल परीक्षण जरूर कराना चाहिए। मृदा परीक्षण से खेत में पोषक तत्वों की कमी का पता चलता है, जिससे किसान परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर खाद और उर्वरक का सही मात्रा में प्रयोग करके बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं

तोरई की खेती करने के लिए मिट्टी को दो से तीन बार हल एवं पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें और जिस खेत में तरोई की खेती करना हो उस खेत में जल की निकासी की उचित व्यवस्था करना  चाहिए और उस खेत में 10 से 15 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में मिला दे. तोरई की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी को सर्वोत्तम माना जाता है

उन्नत किस्म
  • पूसा नस्दार : इस किस्म के फल एक समान लंबे और हरे रंग के होते हैं. यह किस्म 60 दिनों के बाद फूलती है. प्रत्येक पौधों में 15 से 20 फल लगते हैं.Co-1: यह एक हल्की किस्म है और फल 60 से 75 सेमी लंबे होते हैं
बीमारियां और रोकथाम

पत्तियों के ऊपरी धब्बे रोग: इस रोग के कारण पत्तियों के उपरी सतह पर सफ़ेद रंग के धब्बे पद जाते है जिसकी वजह से पत्ते सुख जाते है

बचाव : इस रोग से बचाव के लिए एम 45 को  2 ग्राम 1 लीटर पानी में घोल बना कर छिडकाव करे इसे क्लोरोथालोनिल, बिनोमाइल या डिनोकैप का छिडकाव करके भी रोका जा सकता है

चेपा या थ्रिप्स:  चेपा या थ्रिप्स कीट पत्तियों के रस को चूस लेते है किसके कारण पत्ते पीले पड़ जाते है, थ्रिप्स के हेल से पत्ते मुड़ जाते है कप के आकार में प्रवर्तित हो जाते है या ऊपर की तरफ मुड़ जाते है

बचाव : इस कीट का हमला फसल पर दिखे तो थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करे

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