टमाटर की जैविक खेती के लिए उपचारित किये गए बीज को पंक्तियों में 5 सें.मी. की दूरी पर बोये तथा पंक्तियों को मिट्टी तथा गोबर के मिश्रण से ढके। बुवाई के तुरन्त बाद क्यारी को सूखी घास से ढक लें। मौसम के अनुसार एक या दो बार सिंचाई करें। क्यारी में घनी बुवाई न करें तथा अधिक पानी भी न दें अन्यथा पौधों में कमर तोड रोग फैलने की संभावना रहती है। जब पौधे 8-10 सैं.मी. लम्बे हो जाये तो पंचगव्य के घोल का छिड़काव करें, जिससे पौधों में हरापन ज्यादा रहता है।
टमाटर की जैविक खेती
नर्सरी तथा क्यारी को तैयार करना
टमाटर की जैविक खेती के लिय 1 भाग जंगल की मिटटी + 1 भाग रेत तथा 1 भाग सड़ी गली खाद का मिश्रण कर सकते है इस प्रकार तैयार की गई मिटटी में पानी सोखने की अधिक छमता होती है
क्यारी बनाने का तरीका: क्यारी की साइज 1 मीटर चौड़ी 6 इंच ऊंची होनी चाहिए लम्बाई आवश्यकता अनुसार रखे| 3 मी. लम्बी, 1 मी. चौड़ी तथा 6 इंच ऊंची वाली क्यारी में २०-२५ की.ग्राम सड़ी गली खाद तथा २०० ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट मिलाना चाहिए क्यारी को सीधा तथा समतल रखना चाहिए ताकि बीच में पानी न रुक पाए
बीजों में अंतराल (नर्सरी)
बीजों की बुआई 5 सें.मी. गुणा 2 सें.मी. के अंतराल पर और 0.5 सें.मी. से 1 सैं.मी. की गहराई पर की करना चाहिए। पानी लगाने के बाद क्यारियों में नमी बरकरार रखने के लिए घास और सूखी टहनियों से ढक देना चाहिए। ऐसा करने से कीटों और रोगों को नियंत्रित करने में भी सहायता मिलेगी।
मिट्टी उपचार के नियम
- सूर्य की उर्जा द्वारा
- फार्मलीन विधि द्वारा
क. सूर्य की उर्जा द्वारा : सूर्य की उर्जा से भूमि को रोगाणुरहित भूमि को गर्मियों में सफ़र पारदर्शी पॉलीथिन से ढक दें जिससे सूर्य की उर्जा संचित किया जा सके इस विधि से भूमि का तापमान बढ़ने से इसमे उपस्थित रोगाणु निष्क्रिय हो जाते है या मर जाते है सूर्य की उर्जा से भूमि के तापमान में वृद्धि भूमि के सामान्य तापमान की अपेक्षा 5 सें.मी. गहराई पर 10-12 सैल्सियस तक तथा इससे भी अधिक हो जाता है । इस तकनीक से मृदा-जनित फफूंद फफूद जैसे कि फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया तथा स्क्लैरोशियम आदि के बीजाणुओं को 40 दिनों में सूर्य की ऊर्जा उपचार विधि से पूरी तरह नष्ट हो जाते है।
ख. फार्मलीन विधि द्वारा: मिट्टी का उपचार फार्मलीन 1 भाग को 7 भाग पानी में मिलाकर 8-10 लीटर मिश्रण प्रति वर्ग मीटर में डालें तथा उसे पॉलीथिन से 7 दिनों के लिए ढक कर रखें। इसके बाद पॉलीथिन को हटाकर मिट्टी को समय-समय पर हिलाते रहें। यह क्रिया तब तक करें जब दवाई की गंध पूर्णरूप से निकल जाए, अन्यथा बीज के अंकुरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।
प्रोट्रेज में नर्सरी तैयार करना
टमाटर की जैविक खेती के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए प्लास्टिक ट्रे ले, उसमें 3 इंच सुराख हो तथा इसमें दो प्रकार के मिश्रणों से भरा जा सकता है। पहला जिसमें एक भाग सड़ी गली गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट तथा एक भाग कोकोपीट हो, दूसरा जिसमें तीन भाग कोकोपीट | एक भाग केचुआ खाद तथा एक भाग वर्मीकुलाईट को ले। ट्रे के प्रत्येक छिद्र में एक ही उपचारित बीज डालें। इन सभी मिश्रणों के प्रयोग से नर्सरी में विभिन्न प्रकार के मिट्टी जनित रोग नहीं लगते तथा नर्सरी स्वस्थ तथा सुदृढ़ बनती है। रोपण के बाद पौधे मरते नहीं तथा फसल उपज जल्दी तथा अधिक निकलती है।
नर्सरी लगाना
सबसे पहले टमाटर की पौध तैयार की जाती है। पौध की बिजाई का उचित समय निम्न है-
- निचले पर्वतीय क्षेत्र – जून- जुलाई
नवम्बर – फरवरी (सिंचित क्षेत्र)
- मध्य पर्वतीय क्षेत्र – फरवरी-मार्च
- मई-जून
- ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र – रोपण योग्य पौध को निचले क्षेत्रों में तैयार करना तथा अप्रैल-मई में स्थानांतरण करना।
पौध को संसाधित करना:
पौध को चूषक कीटों जैसे सफेद मक्खी (वाइट फ्लाई) और कीटों से बचाव के लिए 15 दिन पुरानी पौध पर नीम के साबुन का छिड़काव (7 ग्रा0 /लीटर) कर सकते है। प्रतिरोपण (बुआई से 20 दिन बाद) से 2-3 दिन पूर्व पानी में थोड़ी कमी कर और प्रतिरोपण से 1-2 दिन पूर्व उन्हें सीधे धूप के संपर्क में लाकर पौध को सख्त किया जाता है। पौध को खेत में लगाने से 12 घंटे पहले पौध को अच्छी तरह पानी दें। अच्छी पौध मजबूत और 4 से 5 पत्ते (लगभग 4 सप्ताह पुरानी) वाली होती है। पत्तों के रोगों से बचाव के लिए पौध को लगाने से पूर्व सुडोनोमास फ्लोरोसेन्स (10 ग्रा0 /लीटर) में भिगो कर लगाया जाता है। टमाटर की नर्सरी पौध की जड़ को 15-30 मिनट तक हींग के घोल (एक बर्तन में 5 लीटर पानी में लगभाग 100 ग्राम हींग मिलाएं और अच्छी तरह हिलायें) में डुबोएं और मुरझाने संबंधी मृदा जनित रोग कारकों से बचाव के लिए पौध को मुख्य खेत में लगाए|
Apka dvara di gai jankari bahut achhi hai
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