टमाटर में कीट रोग प्रबंधन
A-जैविक कीट रोग प्रबंधन-
टमाटर में कीट रोग प्रबंधन के लिए, जैविक कीट प्रबंधन अपनाना चाहिए. जैविककीट प्रबंधन में, रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करके, पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से कीट रोग प्रबंधन किया जाता है. जैसे
1-ट्राइकोडर्मा विरिडी/ट्राइकोडर्मा हारजिएनमः
ट्राइकोडर्मा विभिन्न प्रकार की फसलों फलों एवं सब्जियों में जड़ सड़न, तथा सड़न, डैम्पिंग आफ, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों आदि के फफूँद जनित रोगों में यह प्रभावी रोकथाम करता है।
ट्राइकोडर्मा के कवक तंतु हानिकारक फफूँद जनित रोगों में यह प्रभावी रोकथाम करता है।
ट्राइकोडर्मा के कवक तंतु हानिकारक फफूँदी के कवक तंतुओं के लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उसका रस चूस लेते हैं।
इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते है, जो सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फहूँदी से सुरक्षा देते है।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा फसलें फफूँदजनित रोगों से मुक्त रहती है।
नर्सरी में ट्राइकोडर्मा के प्रयोग करने पर जमाव एवं वृद्धि अच्छी होती है।
ट्राइकोडर्मा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष होती है।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की विधिः
1- बीज शोधन हेतु 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा० बीज की दर से प्रयोग कर बुआई करना चाहिए।
2- नर्सरी पौध उपचार हेतु 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर उसमें नर्सरी के पौधों की जड़ को शोधित कर रोपाई करना चाहिए।
3-भूमिशोधन हेतु 2.5 किग्रा० प्रति हे० ट्राइकोडर्मा को 65-70 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई से पूर्व आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए।
4- खड़ी फसल में फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।